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________________ * हिन्दी अनुवाद-क्रोध, मान, माया, लोभ, मद, मात्सर्य इत्यादि विविध सांसारिक संतापों की समृद्धि करने में सक्षम दोषों का सर्वथा परित्याग करने वाले वीतरागी और सर्वसुरासुरनरेन्द्रादि द्वारा सदा वन्दनीय ऐसे श्रीजिनेश्वर भगवान की प्रसन्न मुखमुद्रावाली भव्य मूतिप्रतिमा का दर्शन, स्मरण तथा ध्यान करके भक्तजन आनन्द के सागर में निमग्न की भाँति मोहनीयकर्म का विनाश करने वाली अखण्ड शान्ति को प्राप्त नहीं कर सकते ? अवश्यमेव प्राप्त कर सकते हैं। इसमें लेशमात्र भी सन्देह की कोई स्थिति अनुभूत नहीं होती है ।। ३८ ॥ [ ३६ ] 0 मूलश्लोकःपुरातत्त्वं चेदं महति नगरे सञ्चितमदः , ऋते लाभात् किञ्चित् किमिह चिनुते कोऽपि शकलम् । कला कासीत् पूर्व क इह नरनाथोऽर्चनविधिः, पुरातत्त्वं चेदं प्रथयति सुसम्बोधयति तत् ॥ ३९ ॥ संस्कृतभावार्थः-प्रत्येकेषु महानगरेषु नगरेषु च पुरातत्त्व विभागेन प्राचीनानां वस्तूनां विविधप्रतिमा(मूत्ति) शस्त्र-अस्त्र-शास्त्रादीनां संचयो राजकीयनियमानु
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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