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* हिन्दी अनुवाद - इस अवसर्पिणी काल में असि मसि तथा कृषि का व्यवहार प्ररूपित तथा प्रकाशित करने वाले श्रीश्रादिनाथ - ऋषभदेव भगवान हैं । व्यवहार शास्त्रों में मनुष्यों के समस्त कर्त्तव्य तथा कर्त्तव्य निर्धारित हैं । . मनुष्य को सर्वप्रथम आगमादि शास्त्रों से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए | पश्चात् अन्य को भी प्रतिबोधित करना चाहिए। शास्त्रोक्त विधिपूर्वक स्वयं देवपूजन करना चाहिए तथा अन्य को भी इसमें सत्प्रेरित करना चाहिए । यथाशक्ति सत्पात्र के अनुसार दान देना तथा सम्मानपूर्वक दान लेना भी चाहिए । इस प्रकार व्यवहार- शास्त्रों में मनुष्य के कार्य निर्धारित हैं; तो फिर हे कुतर्क के काँटों में फँसे मूर्तिपूजा विरोधी ! तुम स्वयं कहो कि श्रीश्रागमशास्त्रसम्मत, विद्वत्प्रतिपादित यह मूर्तिपूजा कैसे कुतर्करचना हो सकती है ? ।। ३४ ।।
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मूलश्लोक:
स्वकीयं सम्मानं कथय किमु नेच्छन्ति मनुजा:, सुरादीन् चेदर्चेन् मुदितहृदयो भव्यपुरुषः । कथं तं सम्प्रेक्ष्य ज्वलसि हृदये ज्ञानविकलः, पतन् गर्तागर्भे कथमिहपरान् पातयसि भो ।। ३५ ।।
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