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समर्था नाभवन् । यतो हि पराधीनता परमुखापेक्षिता दास्यभावना न कदापि भद्राय शिवाय च कल्पते । सम्प्राप्ते स्वातन्त्र्ये भारतीयवैज्ञानिकानामाविष्काराः कस्य न श्रुतिपथमायाताः ।
इत्थं विश्वव्यवहारप्रवर्तकेन श्रीआदिनाथेन-श्रीऋषभदेवेन मूर्तिपूजापि मुक्तकण्ठेन समर्थिता। तदनुसारेणैव साम्प्रतमपि लोकव्यवहारो मूर्तिपूजा दौ परिलक्ष्यते ।।३३।।
* हिन्दी अनुवाद-वर्तमानकालीन वैज्ञानिक चमत्कार के युग में जो कुछ भी हमें नवीनता दिखाई देती है, वह सर्वथा नवीन नहीं है। प्राचीनकाल में भी विशिष्ट महापुरुषों ने अपने आध्यात्मिक तापसिक चमत्कार से सब कुछ निर्मित किया था; किन्तु महाभारत के महासंग्राम में अनेक आर्ष वैज्ञानिक हताहत हुए, तथा बाद में भी पराधीनता के कारण विकास, वैज्ञानिक-उपलब्धि में बाधायें व्याप्त हुईं।
पराधीनता नामक पिशाचिनी कदापि शुभंकरी, प्रगतिप्रदायक नहीं बन सकती। स्वतन्त्रता के पश्चात् अवशिष्ट भारतीय वैज्ञानिकों के भौतिक चमत्कार सर्वविदित हैं। ठीक इस प्रकार मूत्तिपूजा भी कोई नयी