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किन्तु श्रद्धापूर्वक पूजने पर वह सर्वस्व प्रदान करने में समर्थ है। जड़पदार्थों में तो जैसी अद्भुत शक्ति दृष्टिगोचर है, वैसी चेतन में भी नहीं है। क्या पारसमणि के संयोग से लोहा सुवर्णमय नहीं बनता ? क्या चुम्बक के प्रभाव से लोहा नाचने नहीं लगता ? क्या जड़ रसायन
औषधियों से भयंकर रोगों का उपशमन नहीं होता ? विवेकी जन स्वयं विचार करें कि मूर्तिपूजा क्या-क्या लोकोपकार नहीं करतो ? ॥ ३२ ।।
[ ३३ ] । मूलश्लोकःजगत्यां यत् किञ्चि-न्नयनपथमायाति सुभगं , प्रणेतारस्तेषां विमलमतयस्ते बुधवराः । युगादीशेनादौ प्रथमविधिना प्राणिसुकृते , पुरैवोक्त सर्व प्रथयति जनो नान्यदपरम् ॥ ३३ ॥
+ संस्कृतभावार्थ:-साम्प्रतं वैज्ञानिक-चमत्कारयुते युगे यत् किञ्चिदपि दृष्टिपथमायाति, तन्न सर्वथा नावीन्यं भजन्ते । पुरापि विशेषज्ञैर्महापुरुषैरागमशा. स्त्रादिषु निगमादिषु च सविस्तारं वणितम् । महाभारतमहासंग्रामे तत्रविशिष्टाः प्राचीनवैज्ञानिकाः विनष्टाः । पश्चात् पराधीनकालेष्वपि आर्षवैज्ञानिका किमपि कत्तु