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________________ संस्कृतभावार्थः-भावपूजायां जल-पुष्प-धूप-नैवेद्यअक्षत-घृत-दीप-फल-कर्पूर-कस्तूरी - चन्दनादीनां पदार्थानामपेक्षा न भवति, किन्तूत्तममनसः सुभगपरिणामोऽपेक्ष्यते । अतएव ज्ञानिनो भक्ताः परिणामं संशोध्य दत्तावधानेन निष्ठया मनोयोगेन श्रद्धया ज्ञानेनात्मविज्ञानेन जपतपोभावेन परमशान्तेन चेतसा, दान्तेन च स्वरूपेण भावपूजनं कुर्वन्ति ।। २६ ।। * हिन्दी अनुवाद-भावपूजा में जल, पुष्प, धूप, नैवेद्य, अक्षत, घृत, दीप, फल, कर्पू र, कस्तूरी तथा चन्दन इत्यादि पदार्थों की किञ्चिद् मात्र भी आवश्यकता नहीं रहती; अपितु इसके लिए सुभग मानसिक एकाग्रता अपेक्षित है । अतएव ज्ञानीजन सतत चंचल-चपल मन को विशुद्ध करके एकाग्रचित्त, जितेन्द्रिय निर्विकार भाव से श्रद्धा, निष्ठा तथा मनोयोग से ज्ञान एवं प्रात्मविज्ञान से जप-तप इत्यादि के द्वारा भावपूजन में मग्न-लीन रहते हैं ।। २६ ।। [ २७ ] - मूलश्लोकःन वा यस्यां दीपो घृतलवनिपातो न च पुनः , न वा द्रव्याऽऽकाङ्क्षा पुनरपि न द्रव्यान्तररुचिः । न वा जैनागारं न च पुनरहो बिम्बमनघं , यजन्ते विद्वान्सो विमलहृदयं तं जिनवरम् ॥ २७ ॥
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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