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श्रीजैनागम-पारदशिनो विरक्ताः विवेकविज्ञानभासुराः विद्वांसो महान्तः सन्तः सम्यकप्रकारेण जानन्ति । द्रव्यपूजा सुखद-देवादिगतिः प्रदात्री। भावपूजा तु भवभ्रमणविनाशिनी, भव्यात्मनोऽखण्डानन्दप्रदात्री, अष्टाविधकर्मकलापलवित्री परमसुख-प्रदात्री च वर्तते। अतएव ज्ञानिनः सर्वदा भावपूजायां तन्मयाः भवन्ति ।। २५ ।।
* हिन्दी अनुवाद-द्रव्यपूजा तथा भावपूजा में क्या भेद है ? इस रहस्य को श्रीजैनागम-शास्त्रों के मर्मज्ञ विवेक विज्ञान से समुल्लसित महान् मुनिमहात्मा, सन्तपुरुष एवं विद्वान् भलीभाँति समझते हैं। द्रव्यपूजा सुखददेवगति आदि के सुख प्रदान करती है तथा भावपूजा भवबन्धन का विनाश कर प्रात्मा का सुन्दर प्रकाश तथा अखण्ड आनन्द प्रकट करती है और अष्टविध कर्मजालों का समूल उच्छेद करती है। अतएव ज्ञानीजन सर्वदा भावपूजा में ही मग्न-लीन रहते हैं ।। २५ ॥
[२६] । मूलश्लोकःजलं पुष्पं धूपं न च मधुरनैवेद्यमक्षतं , घृतं नो वा दीपं निरुपमफलं चन्दनशुभम् । कर्पूरं कस्तूरी न च मलयजं वासितवनं , समीहन्ते भक्ताः सुभगपरिणामैस्तमयजन् ॥ २६ ॥
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