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भव्यजीवाः ! आत्मकल्याणभावना चेत् सर्वदा सर्वथा सुखप्रदायिनीं श्रीजिनेश्वरमूर्ति - जिनप्रतिमां पूजयन्तु ।। २० ।।
भक्त्या
* हिन्दी अनुवाद - सुरासुरेन्द्रों ने स्वकीय भक्ति, शक्ति एवं दिव्य ऋद्धि-सिद्धि के अनुसार प्रत्येक श्रीजिनेश्वरदेव के कल्याणक महोत्सवों का आयोजन किया है । यह बात पूर्ण प्रामाणिक है एवं श्रीजैनागमादिक अकाट्य प्रमाणों से सिद्ध है । देव श्रीनन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव का आयोजन करते हैं तथा श्रीजिनमूर्ति- प्रतिमानों का वन्दन-पूजन करके अपने विमान से देवलोक को प्रयाण करते हैं । हे भव्यजीवो ! यदि अपनी आत्मा का कल्याण चाहते हो तो सर्वदा सुखप्रदायिनी श्रीजिनेश्वर मूर्तिप्रतिमा का भक्तिपूर्वक पूजन करो ।। २० ।।
[ २१ ]
मूलश्लोक:
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सुराद्रौ सा देवंरवधिमतिभिः प्राग्विरचिता विलुप्ता मोहान्धविगलितविवेकैः कुपुरुषैः । कियन्तो नो मुक्ता भवगुरुसुपूजां विदधतः तो भव्यैः कार्या शिवसुखनिधानंकजननीम् ॥ २१ ॥
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