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________________ अनेकबार उल्लेख होने के कारण-पूर्वोक्त कथन अक्षरशः प्रामाणिक है। देवलोकनिवासी शक्रेन्द्रादि चौंसठ इन्द्रइन्द्रारिणयाँ तथा अनेक देव-देवियाँ भी श्रीतीर्थंकर भगवन्तों के पंचकल्याणकों के समय हर्ष-प्रकर्ष से आते हैं और अष्टाह्निका-महोत्सव का आयोजन भी भक्तिभावपूर्वक करते हैं। कल्याणकारी विविध रत्नादि वृष्टि से सभी पाप-ताप-सन्तापरहित हो जाते हैं ।। १६ ।। [ २० ] । मूलश्लोकःइदं भक्त्या सर्व विपुलमहिमानं विदधिरे , विधायान्ते नंदीश्वरप्रवरदीपेष्वनुययुः । ततश्चक्रुः पूजां त्रिभुवनपतीनां प्रतिकृतेः , इदं सत्यं मूर्तेविदधतु सपथ्यनरवराः ॥ २० ॥ 5 संस्कृतभावार्थः-सर्वसुरासुरेन्द्रः निरुपमभक्तिपूर्वकं महोत्साहेन महोत्सवं वितन्यते । नाऽत्र मनागप्यवकाशः संशयस्य । यतो हि श्रीजिनागमप्रमाणसिद्धं यत् स्वर्गनिवासि सर्वसुरासुरेन्द्राः प्रति श्रीजिनकल्याणकानन्तरं सुप्रसिद्ध श्रीनन्दीश्वरद्वीपे द्विपञ्चाशद् जिनमन्दिरे जिनमूर्तीणां-प्रतिमानां पूजां, अष्टाह्निकामहोत्सवमायोज्य सम्पूज्य च निजविमानः प्रयान्ति देवलोकम् । अतो हे --- २७ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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