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श्रात्मन् !
संस्कृतभावार्थ :- हे सांसारिक परिणामतोऽसारे संसारेऽधिकांशतः समयो दुःखदावादलेन समाक्रान्तो भवति । सर्वे जीवाः सुखं वाञ्छति न तु दुःखम् । अहं विश्वसीमि यद् भौतिकवादी जनः श्रीजिनमूर्तिपूजां भक्ति विना कदापि सौख्यनिचयं शाश्वत् सुखश्च न प्राप्नोति ।। १२ ।।
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* हिन्दी अनुवाद - हे सांसारिक प्रात्मन् ! वस्तुतः इस असार संसार में अधिकांश समय दुःख की कराल अग्नि से प्राक्रान्त तुल्य व्यतीत होता है । संसार के सभी जीव सुख चाहते हैं, तथा दुःख किसी को अभीष्ट नहीं है । मेरा विश्वास है कि श्री अरिहन्त भगवन्त की अर्चना, भक्ति के बिना भौतिक पदार्थवादी कभी शाश्वत सुख को प्राप्त नहीं कर सकता है ।। १२ ।।
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० मूलश्लोक:
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कुबुद्धीनां शुद्धि सहजनिजदृष्ट्या प्रकुरुते भवान्धौ भीतानां भ्रमितविषयासक्तमनसाम् । सुशान्ति निष्क्लान्ति विगतभवभ्रान्ति वितनुते यदीयां सान्निध्यं श्रयतु सततं तां सुखकरीम् ॥ १३ ॥
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