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________________ संस्कृतभावार्थ:-हे संसारिजीव ! यस्याः स्फूर्तिमत्या श्रीवीतरागदेवस्य मूर्तेः सम्यग् अर्चना, सेवा-पूजा अस्मिन् दुःख-सन्दोह-समाकुले अस्मिन् असारे संसारेऽनेकविद्या बलं परमां शान्ति सुखं सौभाग्यं सौख्यं सदा सुन्दर गुणावली ददाति । तां स्फूतिमतीं श्रीजिनेश्वरमूर्ति अनुपमशुभभावेन सर्वदाऽऽश्रय ।। ११ ।। * हिन्दी अनुवाद-हे संसारी जीव ! वीतराग श्रीजिनेश्वर भगवान की मूत्ति-प्रतिमा की सत्सेवा, पूजा, अर्चना, स्तुति-स्तवना-गुणगान इत्यादि इस दुःखद असार संसार में अनेक प्रकार की विद्या, सम्बल-शक्ति, परमशान्ति, सुख, सौभाग्य तथा सौख्यादि प्रदान करते हैं। अतः तुम उस जिनेश्वर भगवान की मूत्ति-प्रतिमा का आश्रय पूर्ण श्रद्धा, विश्वास एवं निष्ठा के साथ करो ।। ११ ॥ [ १२ ] [] मूलश्लोकःअसारे संसारे भवति बहुधा दुःखसमयः , समे जीवाश्चान्ते सुखमभिलषन्तीति विदितं । कृते यत्ने शाश्वन्नहि सुलभते सौख्यनिचयं , ऋतेर्हत् सक्ति कथमपि जनो भौतिकरतः ॥ १२ ॥ श्रीजिन.--२
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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