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संस्कृतभावार्थः-रमणीये सुखदे प्रशान्ते स्थाने भगवतः श्रीवीतरागदेवस्य मनोहरमूर्तिः नानाविधपूजादिकं विधाय श्रीजैनागम - शास्त्रोक्तरीत्या अंजनशलाका - प्राणप्रतिष्ठा स्थापितव्या। एवमनुष्ठानेन सकलमपि मानवजीवनं सफलं सरसं सम्पद्यते। मनुष्यः सांसारिकं सौख्यं समधिगम्य दुर्लभं महता प्रयासेन प्राप्यं परमपदमविनश्वरं जन्मजरा-मरणदुःखत्रयशून्यं मोक्षमपि लभते ।। ८ ।।
* हिन्दी अनुवाद-रमणीय, सुखद तथा प्रशान्त स्थान पर श्रीजिनेश्वर भगवान को सुमत्ति की स्थापना शास्त्रोक्त विविध विधि-विधानपूर्वक हर्षोल्लास से करनी चाहिए। ऐसा करने से सम्पूर्ण मानव-जीवन सफल एवं सरस विघ्न-बाधारहित बन जाता है। मनुष्य सांसारिक सौख्य को प्राप्त कर, पश्चात् सदा अविनाशी अक्षय आधिदैविक, आधिभौतिक, आधिदैहिक तीनों प्रकारों के दुःख से रहित परमपद-मोक्ष को भी सहज रीति से प्राप्त करता है ।। ८ ॥
[६] - मूलश्लोकःस्वकीयान्तान्तं शमयितुमलं वाञ्छसि यदि , तदा शास्त्रैः सिद्धा प्रथितमुनिराजैरधिगता । गुणागाराधारा परमसुखसौविध्य - सरिता , सुमूत्तिः स्फूर्तिश्चाखिलसरसभावैः श्रय सदा ॥६॥