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________________ [ ५ ] - मूलश्लोकःसुनिक्षेपं द्रव्यं भवभयहरं सर्वविदितं । विनिर्युक्तावश्ये श्रमरणपरमैरिणतमहो । सदाऽऽकृत्या सद्यः सुलभ-सुखपात्रं हृदिगतं । सदा द्रव्यात् सौख्यं भवति लभते शान्तिनिचयम् ॥ ५ ॥ संस्कृतभावार्थः-विदितवरमेतत् यद् द्रव्यनिक्षेपो भवभीतिहारी वर्तते । श्रीअावश्यकनियुक्तिभाष्ये श्रमणपरमैः प्रबलैः प्रमाणैः सर्वं सुस्पष्टतया प्रतिपादितम् । सद्ग्राकृत्या - स्थापनानिक्षेपेण मूत्ति - प्रतिमा - स्थापनेन मनोरथानां सम्पूर्तिर्भवति । द्रव्यादिनिक्षेपैः परमसुखस्य शान्तिश्च प्राप्तिर्भवतीति निःसंदिग्धम् ।। ५ ।। * हिन्दी अनुवाद-सर्वविदित है कि श्रीजैनागमशास्त्रानुसारी द्रव्य निक्षेप सांसारिक ईति-भीति को सर्वथा दूर करने में समर्थ है। आवश्यकनियुक्ति भाष्य में यह बात महाज्ञानियों के द्वारा अत्यन्त स्पष्ट रूप से प्रतिपादित है। स्थापनानिक्षेप - मूत्ति - प्रतिमास्थापन प्रादि से मनोवांछित समस्त सत्कार्यकलापों की संसिद्धि एवं सम्पूर्ति होती है। द्रव्यादिक निक्षेपों के माध्यम से परमसुख एवं परमशान्ति की प्राप्ति होती है। यह बात भी सन्देहरहित है, इतना ही नहीं, किन्तु प्रामाणिक भी है ।। ५ ।।
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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