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जिनमूति-जिनप्रतिमा - पूजायाः स्पष्टनिर्देशाः प्राप्यन्ते । श्रीलोगस्ससूत्रसारांश: 'नमो अरिहंताणं' इति महामन्त्रसारोऽपि नाम्नो माहात्म्यं दर्शयति प्रकट यति च ॥ ४ ॥
* हिन्दी अनुवाद-नामनिक्षेप तथा नामस्मरण की महिमा श्री जैनागमशास्त्रों में ही नहीं, अपितु जैनेतरशास्त्रों में भी प्रकीर्तित है। नाम जाप का अनुपम प्रभाव सभी मनोवांछित कार्यकलापों का सम्पादन करता है। यह तो जप-जाप करने वाले आज भी अनुभव कर रहे हैं । श्रमण भगवान् श्रीमहावीरस्वामी द्वारा दिये गये धर्मोपदेश ही श्रीगणधर भगवन्तों द्वारा आगमसूत्रों में निबद्ध हैं। अतः श्रीउत्तराध्ययन सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में आगत . दसवें अध्ययन में, श्रीव्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवती सूत्र के तृतीय शतक में आगत प्रथम उद्देश में, तथा बीसवें शतक के नौवें उद्देश में, श्री सूत्रकृताङ्गसूत्र के छठे अध्ययन में, श्रीस्थानाङ्गसूत्र के चौथे और दसवें स्थान में, श्री प्रश्नव्याकरणसूत्र के प्रथम और तृतीय संवर इत्यादि जिनागमों में जिनमूत्ति-जिनप्रतिमा पूजा एवं नाममहिमा परिलक्षित है। लोगस्स सूत्र एवं 'नमो अरिहंताणं' महामन्त्र भी नामनिक्षेप महिमा को स्पष्ट करते हैं ।। ४ ।।