SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामाऽऽकृति-द्रव्य-भावैः निक्षेपैः पूज्या जिनमूतिः-जिनप्रतिमा इति पूर्वमेव प्रतिपादितम् । कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्य - प्रणीते श्रीसकलार्हत् - स्तोत्रेऽपि कथितमिवनामाऽऽकृतिर्द्रव्य-भावः, पुनतस्त्रिजगज्जनम् । क्षेत्रे काले च सर्वस्मि-नहतः समुपास्महे ॥ २ ॥ अतः सज्जनः शास्त्रिकैः सद्बुद्धिभिः सम्यक्प्रकारेण नामादिनिक्षेपैराराध्या पूजनीया। यतो हि शास्त्रानुभवसिद्धेयं जिनप्रतिमापूजनपद्धतिः ।। ३ ।। * हिन्दी अनुवाद-तत्त्वदर्शी मुनिराजों तथा विद्वानों ने नाम, प्राकृति, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों से जिनमूत्ति-जिनप्रतिमापूजन का सन्मार्ग प्रशस्त किया है । अतः सज्जन, आस्तिक, सुबुद्धजनों को विधिवत् नामादि चार निक्षेपों से श्रीजिनेश्वर भगवन्तों की अंजनशलाकाप्राणप्रतिष्ठा कृत मनोहर मूर्ति-प्रतिमा-बिम्ब की अर्चनापूजा अवश्यमेव करनी चाहिए। क्योंकि, यह जिनप्रतिमापूजन-पद्धति जिनागमशास्त्रानुभवसिद्ध निश्चय ही पूर्णतः प्रामाणिक है। विशेषः (१) वस्तु-पदार्थ के आकार-प्राकृति तथा गुण से
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy