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कति महापुरुषा झटिति मोक्षं न प्राप्नुवन्तः ? अनेके महापुरुषाः मूर्तिपूजया शिवं-मोक्षं भेजिरे ।। २ ॥
* हिन्दी अनुवाद-महान् प्रयासों से भी जो तत्त्व आराध्य नहीं है, अथवा क्लिष्ट-क्लिष्टतर उपायों के द्वारा अत्यन्त कष्ट सहन करके प्राप्त होता है, संसार में जो अलभ्य कहा जाता है, वह भी सत् प्रयासों से फिर सुलभ भी बन जाता है। अतः पूर्वोक्त कठोरता-क्लिष्टता को सम्यक् प्रकार से देखकर के तत्त्वदर्शी कवियों तथा प्रवक्ताओं ने उन्मुक्त कण्ठ से सहज सरल उपाय मूर्तिपूजा के विषय में कहा है कि-'मूर्तिपूजा से असंख्य ही महापुरुष सहज रीति से शिव-मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं।' वस्तुतः मूत्तिपूजा साधना का, आराधना का सरल एवं सहज उपाय है ॥ २ ॥
[३] । मूलश्लोकःचतुर्भिनिक्षेपैः प्रथिततर - नामाकृतिमयैः , सुभावैः सन्दिष्टा विमलमतिभिः संयमधनैः । सदा सद्भिरसेव्याः सुमतिसदनैर्नम्रवचनैः , यतश्चैतच्छास्त्र - रनुभवपदै - दृष्टमखिलम् ॥ ३॥
+ संस्कृतभावार्थः- तत्त्वशिभिर्मुनिभिविद्वद्भिश्च