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की। बाद में अनुकूलतानुसार पूज्यपाद श्री ने मन्दगति से सहर्ष शिखरिणी आदि छन्दों में सरल संस्कृत भावार्थ तथा हिन्दी अनुवाद युक्त इस ग्रन्थ को प्रारम्भ किया। परमाराध्य श्री देव गुरु-धर्म के पसाय से तथा स्वर्गीय परमपूज्य शासनसम्राटपरमगुरुदेव तथा स्वर्गीय परमपूज्य साहित्य सम्राट-प्रगुरुदेव की अदृश्य अनुपम दिव्य कृपा से इस वर्ष में मेड़तानगर में महामंगलकारी अंजनशलाका प्रतिष्ठा के शुभ प्रसंग पर वैशाख सुद छठ और बुधवार के दिन सानन्द यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ।
इस ग्रन्थ की संस्कृत भावार्थ तथा हिन्दी अनुवाद युक्त शिखरिणी आदि छन्दों में सुरम्य रचनाकार पूज्यपाद आचार्यश्री ने इस ग्रन्थ का सम्पादन कार्य भी स्वयं ने किया है तथा आत्मनिवेदन संस्कृत में लिखा है। इस ग्रन्थ की हिन्दी में प्रस्तावना लिखने का तथा संशोधनादि का कार्य पण्डितप्रवर श्री शम्भूदयाल
जी पाण्डेय ने रुचिपूर्वक किया है। ग्रन्थ के स्वच्छ, शुद्ध एवं निर्दोष प्रकाशन का कार्य डॉ. चेतनप्रकाशजो पाटनी की देखरेख में सुसम्पन्न हुआ है।
इन सभी का यहाँ पर हम हार्दिक आभार मानते हैं ।
इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने में द्रव्य सहायता करने वाले विशनगढ़ (जालोर) निवासी संघवी श्री पुखराजजी ताराचन्दजी का भी हम सहर्ष आभार मानते हैं ।
-प्रकाशक
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