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॥ ॐ ह्रीं अर्ह नमः ।। सद्गुरुभ्यो नमः ॥ ॥ ऐं नमः ।।
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* श्रीजिनमूर्तिपूजासार्द्ध शतकम् * _[ संस्कृतभावार्थ-हिन्दीअनुवाद-संयुक्तम् ]
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___ - विरचितं - शास्त्रविशारद-साहित्यरत्न-कविभूषण
पदेतिसमलङ्कृतेन आचार्यश्रीमद्विजयसुशीलसूरिणा
[ मङ्गलाचरणम् ] नत्वा जिनोत्तमान् देवान् ,
पूज्यान् गणधरान् वरान् । स्मृत्वा श्रीनेमि-लावण्य
दक्षसूरीश्वरान् गुरून् ॥ १ ॥ श्रीजिन.-१