________________
नामाकृतिद्रव्यभावरूपैश्चतुनिक्षेपैः नित्यं पूजितेयमिति । देवलोकवासिदेवेन्द्रैरपि देवाधिदेवश्रीजिनेश्वराणां मूर्तिपूजाप्रतिमापूजा भावभक्तिपूर्वकं कृता। अतः कल्पवृक्षादपि अधिकेयं मनोरथप्रदा संसारावागमनविध्वंसिनी श्रीजिनमूत्ति-जिनप्रतिमा सर्वदा सर्वथा श्रद्धया भक्त्या च पूजनीया वन्दनीयेति संसिद्धम् ।। १५० ।।
* हिन्दी अनुवाद-पागमादिक अनेक प्रकार के प्रमारणों से प्रमाणित यह 'श्रीजिनमूत्तिपूजा' पूर्णतः सत्यानुप्राणित है। श्री तीर्थंकर भगवन्तों, गणधरों, महापुरुषों एवं इन्द्रों इत्यादि द्वारा भी यह नाम, प्राकृति, द्रव्य और भाव से सदा पूजित रही है। अतः कल्पवृक्ष से भी अधिक मनोरथदायिनी, भवबन्धनिवारिणी 'श्रीजिनमूत्ति' सर्वदा श्रद्धा और भक्तिभाव से पूजनीय एवं वन्दनीय है। यह सर्वदा सिद्ध है ।। १५० ।।
-०-१७६--