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________________ शोभनैः उदारैः सारवद्भिर्वचनैः एषा मूर्तिपूजा प्रादृता, अभिवन्द्या च वर्णिता। अतएव श्रीजिनेश्वरमूर्तिपूजासार्द्धशतकं मे मनोमलविनाशाय समर्थम्-इति ।। १४६ ।। * हिन्दी अनुवाद-विश्वविदित जैनागमों, विविध निगमों तथा शास्त्रों में प्रामाणिक सद्वचनों, सुतों के माध्यम से जिनमूर्तिपूजा का समुल्लेख है तथा यह जिनमूर्ति सदैव त्रिलोक में अभिनन्दनीय एवं वन्दनीय है । अतएव मेरी आस्था है कि यह 'श्रीजिनमूर्तिपूजासार्द्धशतकम्' मेरे अन्तर्मन के समस्त पापरूपी कालुष्य को विनष्ट करने में समर्थ है ।। १४६ ।। [ १५० ] र मूलश्लोकःइत्थं श्रीजिनराजमूत्ति-महिमा शास्त्रैः प्रमाणीकृता , सन्नामाकृति-द्रव्य-भाव-भरितैः सम्पूजिता सज्जनः । देवैर्या महिता नतेन शिरसा विघ्नौघविध्वंसिका , तस्मात् सर्वफलप्रदा जिनपतेर्मूत्तिः सदा पूज्यताम् ॥१५०॥ + संस्कृतभावार्थः-युक्तियुक्तागमादिप्रमाणैः प्रमाणिता 'श्रोजिनमूत्तिपूजा' पूर्णरूपेण सत्यानुप्राणिता अस्ति । सर्वज्ञसत्पुरुषैः श्रीतीर्थङ्करैः श्रुतकेवलिश्रीगणधरैश्च सततं -- १७८ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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