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________________ मया सुशोलसूरिणा यत्किमपि शास्त्रानुकूलमागमानुसारि च मूर्तिपूजायाविषये तथ्यात्मकं सत्यात्मकञ्च लिखितं तन्मन्ये भवतां परमकृपाया एव प्रतापः । * हिन्दी अनुवाद-हे करुणामूर्ति ! जिनेश्वर !! आपकी कीर्तिकला अत्यधिक विशाल है। उसका सम्यक्तया वर्णन "यह इतना ही है, ऐसा ही है ।" कोई भी छद्मस्थ जीव नहीं कर सकता तथापि मैंने [विजयसुशीलसूरि ने] यह जो मूर्तिपूजा के विषय में आगमशास्त्रवचनानुसार सारगर्भित पूर्ण प्रामाणिक लिखा है-वह भी मानों आपकी परमकृपा का ही प्रतिफल है। अन्यथा मेरी इतनी सामर्थ्य कहाँ ? ॥ १४८ ।। [ १४६ ] - मूलश्लोकःजैनागमेषु निगमेषु च मूर्तिपूजा , सर्वत्र सुष्ठुवचनैः परमेरुदारैः । एषास्ति वणितपदा परमाभिवन्द्या , तस्मादलं मम मनोमलनाशनार्थम् ॥ १४६ ॥ + संस्कृतभावार्थः-विश्वविश्रुतेषु जैनागमेषु विविधेषु निगमेषु च मूर्तिपूजायाः प्रामाणिकता सर्वत्र समुल्ल सिता । سم وو3 م
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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