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. * हिन्दी अनुवाद-जब अगणित तृणों, तमाल तथा विशाल शालवृक्षों द्वारा संस्पृष्ट शशिभालवाले वन में विचरण करने वाला मृगवृन्द जो तृण समूह से सन्तुष्ट है, वह भी नष्ट हुई है बुद्धि जिसकी ऐसे व्याध के बाणों द्वारा या व्याघ्रादि के द्वारा मारा जाता है, कालकवलित हो जाता है, तब अन्य की क्या बात करें, जरा विचार तो करो ॥ १३४ ।।
[ १३५ ] D मूलश्लोकःतथा चास्मिन् लोके मृग इव जनौघः परिचरन् , क्वचिद्रोगैः शोकः क्वचिदपि महाव्याधिकरिभिः । कुयोग भोगैः कृतविधिवियोगैरतितरां , निपीड्यन्ते जीवाः जिनशरणहीनाः कुमतयः ॥ १३५ ॥
+ संस्कृतभावार्थः-यथा मृगो व्याधैः व्याघ्र राक्रान्तः तथैव जनसमूहोऽत्र परिचरन् कदाचिद् सामान्यरोगैः, कदाचिद् महाधिव्याधि-सन्तापैः, क्वचित् कुयोगै गैर्वा कृतविधिवियोगैः शोकरहरहः जिनेश्वरशरणहीनाः जडधियः जीवाः निपीड्यन्ते ।। १३५ ।।
* हिन्दी अनुवाद-जिस प्रकार मृगसमूह शिकारियों एवं हिंसक जन्तु व्याघ्र (बाघ) आदि के द्वारा आक्रान्त