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________________ संसारे त्वत्तोऽन्या शिवकरी पूजा न वर्तते । अर्थात्अर्हत्पूजा शिवङ्करी मङ्गलप्रदायिनी वर्तते । अतः सदैवाराधनीया जिनमत्तिः-जिनप्रतिमा ज्ञेया । * हिन्दी अनुवाद-हे सर्वज्ञ जिनेश्वर भगवन् ! जैसे . इस संसार में अणु से सूक्ष्म, आकाश से विस्तीर्ण और धनपति कुबेर से धनवान कोई भी नहीं है; देवगिरि सुमेरुपर्वत से श्रेष्ठ कोई पर्वत नहीं है। देवेश ! इस संसार में देवाधिदेव श्रीअरिहन्त-जिनेश्वर भगवान की पूजा से श्रेष्ठ-श्रेष्ठतर-श्रेष्ठतम शिवकरी कोई पूजाआराधना एवं उपासना नहीं है । अतएव श्रीजिनप्रतिनिधि स्वरूपा यह मूत्ति-प्रतिमा सदैव अवश्य पूजनीया है ।। १३० ।। [ १३१ ] - मूलश्लोकःयथाग्ने वान्यो जगति दहनो विश्वदहनः , रवेरन्या को वा तरुणतिमिराभोगभिदुरः । समीरात् कश्चान्यः सततगतिमान् विश्वकुहरे , तथा त्वत्तो नान्या जगति जिन! पूजा शिवकरी ॥ १३१ ॥ + संस्कृतभावार्थः-हे जिनेश्वरभगवन् ! यथा अस्मिन् संसारे पावकं परित्यज्य अन्यः कश्चित् विश्वदाहक: नास्ति । --- १६० ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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