SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूर्यात् अन्यः कोप्यऽत्र गहनतिमिरविनाशको नास्ति । विश्वकुहरे समोरात् अन्यः कोऽपि सततगतिशीलो नास्ति । तथैव त्वत्तः अन्या कापि मङ्गलकारिणी पूजा न वर्तते । * हिन्दी अनुवाद-हे जिनेश्वर भगवान ! इस संसार में अग्नि को छोड़कर के अन्य कोई भी विश्वदाहक नहीं है। सूर्य को छोड़कर के कोई गहनान्धकार को छिन्नभिन्न करने वाला नहीं है। विश्वकुहर में पवन (हवा) के अतिरिक्त कोई भी सदा गतिमान नहीं है। ठीक इसी प्रकार आपकी पूजा के अतिरिक्त कोई मंगलकारिणी पूजा नहीं है ।। १३१ ॥ [ १३२ ] मूलश्लोकःयतोऽयं संसारो जनन - मरणापायजनको , बहिर्दष्टो रम्यः प्रियजनसुखालापभरितः । अजानन्नस्यान्तं कटुमयविकारं जडतया , प्रविष्टोऽस्मिन् जीवो भ्रमति तव सेवाविरहितः ॥ १३२ ॥ . 5 संस्कृतभावार्थ:-हे वीतरागविभो ! स्फुटमेतद् यदयं संसारो जन्ममृत्युदुखप्रदः बाह्यदृष्टया प्रियजनमधुरालापविलसितो दृश्यते । अत्र प्रवेशे सम्प्राप्ते सति श्रीजिन-११ -०-१६१ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy