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________________ संस्कृतभावार्थः-हे देवाधिदेव ! सुखापहारी दुःखदायी अनियन्त्रितः मां भव भ्रमणरूपके यन्त्रं तिलमिव पीडयति । अहं शङ्क यत् हे प्रभो! एतद् सर्वं तव चरणविरक्तः समुद्भूतम् । सदौषधे स्मृतिपथगते को नाम पीडयितु सक्षमो भवति ? न कोऽपीत्याशयः । * हिन्दी अनुवाद-हे देवाधिदेव ! सुखापहारी, दुःखदायी, अवारित शक्तिमान् यह सन्ताप संसाररूपी चलते यन्त्र में मुझे तिल के समान सदैव पीस रहा है, पीड़ा प्रदान कर रहा है। मैं ऐसा मानता हूँ कि यह आपके चरणकमलों की सेवा-पूजा के प्रति अनास्था, प्रमाद भाव आदि के कारण ही प्रस्तुत हुआ है। अन्यथा सदौषध सेवन-परायण रहने पर भला कोई रोग कैसे बच सकता है ? ।। १२६ ।। [ १२७ ] 2 मूलश्लोक:जगत्यस्मिन्मूढाः कनकललनाच्छादितधिया , धनाथ गाहन्ते जलधिजलयानेन विषयान् । असारं वित्तानां कथमपि मतौ नो पदमगात् , तदेतद् प्रार्हन्त्या गुरणविमुखताया विलसितम् ॥ १२७ ॥ --- १५६ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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