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________________ की सेवा से प्रसन्न होकर उसके भौतिक कष्टों का निवारण करता है, ठीक उसी प्रकार प्रभु की सतत पूजा, सेंवा एवं उपासनादिक से अर्हन्प्रतिमा मृत्युरूपी सन्ताप का प्रात्यन्तिक विनाश करती है। सौभाग्यवश मन्दबुद्धि भी यदि जन्म-मरण-सन्ताप को दूर करने वाली वीतराग श्री जिनेश्वरदेव की मूति-प्रतिमा की सेवा करता है तो वह निश्चित रूप से निरापद एवं आतंकरहित हो जाता है। वस्तुतः मनुष्य को पाप-ताप-सन्ताप से सर्वथा मुक्त करने में समर्थ ऐसे श्रीअरिहन्त परमात्मा या तत् प्रतिनिधि स्वरूपा जिनमूर्ति-जिनप्रतिमा-जिनबिम्ब है ।। १२२ ॥ [ १२३ ] - मूलश्लोकःभवेद् यो पापीयान् चरणकरणाभ्यां प्रपतितः , कथञ्चित् सद्बोधात्स्मरति जिनमूत्ति सुखकरीम् । द्रुतं पापान्मुक्तः पतितजनता पावयति वै , लवो गाङ्गो लोकान् मुखमपि गतः पावयति च ॥ १२३ ॥ + संस्कृतभावार्थः-संसारे लिप्साभावैर्बद्धः धर्मकर्मचरित्रैः पतितोऽपि कदाचित् सज्ञानोदयाद् यदि सुखकारिणी वोतरागश्रीजिनदेवस्यमूत्ति स्मरति, सेवते वा तदा स झटिति पापान मुक्तः सन् पतितानपि जनान् पावयति । --- १५२ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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