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+ संस्कृतभावार्थः-अशान्तिजनकं सकलं भौतिकक्रियाकलापं त्यक्त्वा सुखं शान्ति आह्लादमभिलषन् विषयभोगविरक्तः शिवसुखमयीं मुक्तिदात्रीमहन्मूत्ति सेवमानः को नाम भक्तः परमसुखं निराबाधं सारं न प्राप्नोति ? अर्थात्-कोऽपि पुरुषः स्त्री वा यदि सर्वगुणसम्पन्नां मोक्षदायिनी परमसुखसौलभ्यप्रदात्रीं अर्हतः मूत्तिप्रतिमा स्वैषायिकतृष्णा-विहीनः परमश्रद्धया पूजयति सेवते वा तदा शमशिवसुखं निश्चप्रचत्वेन लभते ।
* हिन्दी अनुवाद-भौतिक-कार्यकलापों को छोड़कर के सुख-शान्ति, विशुद्ध आह्लाद की अभिलाषा रखने वाला विषयभोगविरक्त परमकल्याणकारिणी, मुक्तिसूक्तिप्रदात्री भगवान् श्रीअरिहन्तदेव की मूर्ति-प्रतिमा की सेवा-पूजादि करते हुए निश्चित रूप से प्रखण्ड अनन्त निराबाध सारस्वरूप परमसुख को प्राप्त करता है। तात्पर्य यह है कि-वीतराग श्री अरिहन्त जिनेश्वर भगवान की चारों निक्षेपों से पूजनीक ऐसी मूत्ति-प्रतिमा का पूजन-भजन तथा कीर्तनादि सद्यःफलदायी होता है तथा संसार-सागर के समस्त क्लेश-जालों को दूर कर निरापद मुक्तिमार्ग को प्रशस्त करता है । १२० ।।
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