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________________ क्रान्त होकर पलायित हो गये जिस प्रकार गरुड़ के भय से सर्पगण भाग जाते हैं। रोग से विनिर्मुक्त सुन्दर देह वाले जन भी इस प्रकार दिखाई दिये जैसे सूर्य और चन्द्र ग्रहणमुक्ति के पश्चात् तेजस्वी दिखाई देते हैं। जब पूजा का इतना प्रभाव एवं चमत्कार है तब आप मूत्ति-पूजा से अर्थात्-प्रतिमा-पूजन से विद्वष क्यों करते हैं ? क्या यह वृत्तान्त 'सिरिसिरिवाल कहा' में अर्थात्-'श्रीश्रीपालचरित्र' में परमार्थतः वणित नहीं है ? ।। १११ ।। [ ११२ ] - मूलश्लोकःमहत्त्वं सन्मूर्ते - बुधवरमरालनिगदितं , ततो मान्या पूज्या निखिलसुखदा मूत्तिरमला। बुधा यन्मार्गेरण विगतपरितापाः किल गताः , स पन्था सर्वेषां शमसुखविकासाय कथितः ॥ ११२ ॥ + संस्कृतभावार्थ:-अस्याः श्रीजिनमूत्तिपूजाविषये स्वयमरिहन्तभगवद्भिः श्रुतकेवलिश्रीगणधरैश्च पदे-पदे कथितम् । सर्वसुखप्रदायाः पूजायाः विषये कदाग्रहं विहायाङ्गीकरणमेव वरम् । प्रहन्तु ब्रवीमि येनान्तरायरहितेन महापुरुषाः गतवन्तस्तेनैव मार्गेण सदा गन्तव्यम् । -०-१४० -०
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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