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________________ * हिन्दी अनुवाद-उस श्रीपाल (उम्बरराणा) की प्रियवादिनी, उदारहृदय वाली, मनोहारिणो, कामदेव के अभिमान को भी मर्दन करने वाली, भगवान श्रीजिनेश्वर देव के चरणारविन्दों में बद्ध श्रद्धा वाली सुशीला 'मदना-मयरणासुन्दरी' नामकी धर्मपत्नी थी। उसने श्रद्धा, विश्वास एवं भक्ति से सांसारिक आवागमन, रोग, शोक, सन्ताप आदि का विनाश करने वाला विश्वविदित श्रीसिद्धचक्रभगवान का नौ दिन का विधिपूर्वक आराधन अपने पति के साथ प्रारम्भ किया ।। १०५ ।। [ १०६ ] - मूलश्लोकःनवाह नैः पूजाध्यविहितविधिना पूत्तिमगमत् , व्रतान्ते सद्भक्त्या ह्य पचितसपर्यायकुसुमैः । वरैर्माल्यैर्गन्धैः सुरभितदिगन्तैः फलभरैः , सुधासारह धैर्मृदुलबहुभि - र्मोदक - चयैः ॥ १०६ ॥ + संस्कृतभावार्थः-प्रायम्बिलं नाम तपः नवसु दिवसेषु सम्पन्नतामगमत् । तदेवं नाम सम्प्रति 'नवपदायम्बिलम्' इति नाम्ना प्रतिवर्ष द्विवारं भावुकाः तपोधनाश्च वितन्वन्ति । व्रतस्य सम्पन्नतायां सत्यां श्रद्धया भक्त्या अनुपम-सुरभित-सुमनैः धूप-दीपः सौरभसमन्वितै -- १३३ --
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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