SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नैवेद्यैऋतुफलादि - पुरस्कृतैः संशोधननिर्मल - तीर्थोदकमिश्रित - जलै - भगवतः श्रीशान्तिनाथस्य शान्तिस्नात्रपूजामकुरुताम् । पूजन - सामग्री - सुगन्धिभिदिशोऽपि सुरभिता बभूवुः । * हिन्दी अनुवाद-नौ दिनों की सतत आराधना तथा तपस्या के पश्चात् वह तपोऽनुष्ठान सम्पन्न हुआ। वही व्रत सम्प्रति 'श्री नवपद अोली' के रूप में प्रतिवर्ष दो बार तपस्वीजनों के द्वारा पाराधित होता है। व्रत के सम्पन्न होने पर उन्होंने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अनुपम सुगन्धित धूप-दीप-फल-नैवेद्य एवं पवित्र जल से श्रीशान्तिनाथ भगवान की आराधना में 'शान्तिस्नात्र' आदि पूजा-पूजन किया। पूजन - सामग्री की सुरभि से सारी दिशायें सुरभित हो गयीं ।। १०६ ।। [ १०७ ] - मूलश्लोकःतया तेनेऽभ्यर्चा शिवसुखनिधेः शान्तिसुगुरोः , महाहैः सद्रव्यैर्ललितवरनीरैश्च कलशैः । अखण्डः सद्दीपैः रजतसमशुभ्राक्षतभरैः , अभूत् स्नानं दानं भवभयलवित्रं सुविधिना ॥ १०७ ।। --- १३४ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy