________________
काल्पनिक अथवा असत्य हो तो इसका समूल विनाश हो जाता । गीता में भी कहा है तथा श्रीजैन सिद्धान्त की भी इसमें स्पष्ट स्वीकृति है कि असत् पदार्थ की सत्ता नहीं होती, तथा जिसकी सत्ता होती है उसका त्रिकाल में प्रभाव नहीं होता । मूर्तिपूजा प्राचीन काल में थी, सम्प्रति वर्तमानकाल में है तथा भविष्यत् काल में भी रहेगी । अतः सत्पदार्थ है | । यदि ऐसा न हो तो शास्त्रकारों की यह घोषणा कि सैकड़ों, लाखों जिनबिम्ब बनाश्रो तथा पूजो तथा ये क्रियाकाण्ड ग्रन्थ सब व्यर्थ हो जाते और समस्त मूर्ति - रचना ही व्यर्थ हो जाती ।। १०१ ।।
[ १०२ ]
मूलश्लोक:
,
वयं ब्रूमः किं किं पुनरिह तु तत् पूजनफलं पुरा श्रीपालोऽभूज्जनकजननी - सौख्यजनकः । श्रिया कान्त्या बालोऽप्यमरपतिबालेन सदृशः, रतीशं यस्याग्रे तृणलवनिभं वेत्ति मनुजः ॥ १०२ ॥
5 संस्कृत भावार्थ:- श्रीजिनमूर्तिपूजायाः विषये वयं पिष्टपेषणरूपेण किं किं कथयामः । तस्य महिमा गरिमा च लोकविश्रुता अनन्ता, अपरा च वर्तते । सम्पूर्ण
--- १२८-०