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________________ असारेऽस्मिन् संसारे सर्वं खलु मोहकलितं प्रभोः पूजां विहाय अतएव सततं प्रभु-प्रतिमानं पूजयन्तः, जपन्तो वा प्रभो मानि कालं यापयन्तो लोकव्यवहारं तन्वानाः किन्तु मृत्युसमये ह्य पागते मातरं पितरं भ्रातरं तथान्यं लोकपद्धति विहाय स्वेष्टदेवं प्रभु अर्हन्तं ध्यायन्तः पूजयन्तः स्मरन्तो जपन्तो वा परमपदं परमसुखं मोक्षं लभन्ते । स्वपरिजनस्य मातुः पितुः भ्रातुर्वा मृत्युसमीपे समागते सत्यपि ते एवमेवाहन्नामानि श्रावयन्तः परमसुखं तन्वन्ति । * हिन्दी अनुवाद-धार्मिक लोग भली-भाँति जानते हैं कि प्रसार संसार में प्रभु-पूजा को छोड़कर सब मोहजनित है। अतएव वे प्रभुपूजा प्रभुनाम संकीर्तन जप आदि करते हुए लोक-व्यवहार का आचरण करते हैं, किन्तु मृत्यु के सन्निकट आने पर वे लोकपद्धति, जो मात्र मोहविज़म्भित है, उसे छोड़कर सदैव अपने आराध्यदेव श्रीअरिहन्त भगवान की पूजा, स्मरण में लीन होकर परम सुख मोक्ष को प्राप्त करते हैं। अपने गृहजन तथा परिजन की मृत्यु समीप आने पर भी वे प्रभुपूजा, स्मरण, स्तोत्रपाठ आदि सुनाकर उसे परम सुख पहुँचाते --- १२६ --
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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