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विकाशं शिवङ्करं केवलज्ञानं प्राप्य क्षणात् मुक्तिश्रियं प्राप्ताः, प्राप्स्यन्ति च नात्र संशीतिलेशोऽपि ।
. * हिन्दी अनुवाद-जिस प्रकार सर्वज्ञ श्रीजिनेश्वर के नामस्मरण, संकीर्तन, जपादिक से सांसारिक कष्टों से दूर केवलज्ञान के सुखद परम पवित्र प्रकाश को भक्तगण प्राप्त करते हैं; ठीक उसी प्रकार से वे जिनमूत्ति-पूजा के रहस्य को जानकर के जिनभक्ति, पूजा-अर्चना में मग्नलीन होकर भी सहज तथा सरलतया केवलज्ञान को प्राप्त कर प्राचीन काल में मोक्षगामी हुए हैं, तथा सम्प्रति भी महाविदेहक्षेत्र से मोक्षगामी होते हैं एवं भविष्य में श्रीजिनमूर्तिपूजा पद्धति का प्राश्रय लेकर मुक्तिलक्ष्मी का वरण करते रहेंगे ।। ६६ ।।
[ १०० ] D मूलश्लोकःअतो भव्या लोका मरणसमये वीक्ष्य स्वपितुः , तथा मातुर्धातुः सततमुपकर्तुस्तनुभृतः । विहायान्यत् सर्वं रुतरुदितमावर्ण्यमखिलं , वदन्तश्चाहन्तं शिवसुखमनन्तं विदधते ॥ १०० ॥
+ संस्कृतभावार्थः-धर्मनिरताः जनाः जानन्ति यत्
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