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यन्तु भवन्तो यत् देवपूजापद्धतिमन्तरा कथमेषां पूजापर्यायवाचिनां शब्दानां प्रयोगाः कविवरैराप्तैश्च कृताः, कोशकारैश्च संचिताः ? एतेन सिद्धयति यत् देवपूजा अतीव प्राचीना, प्रामाणिकी चेति ।
* हिन्दी अनुवाद-जिस प्रकार 'हरि' इत्यादि शब्दों का उपाख्यान है, ठीक उसी प्रकार 'पूजा' शब्द के भी अनेक पर्याय शब्दों का उल्लेख कोश में प्राप्त है। जिन्हें यथार्थ वक्ताओं, मनीषियों एवं कवियों ने अपनी-अपनी रचनाओं में प्रयोग किया है। पूजा शब्द के पर्यायवाची के सन्दर्भ में-पूजा, अर्हा, अपचिति, सपर्या, यजन, उपास्या, उपासना, अर्चना, अभ्यर्चा, यजि, इष्टि इत्यादि शब्दों का बहुशः उपाख्यान है। अन्य भी हैं-इनका यह निर्देश स्थालीपुलाक न्याय से किया गया है। आप स्वयं विचार करें कि देवपूजा के बिना पूजा के अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग प्राप्त वक्ताओं, कवियों एवं मनीषियों ने कैसे किया ? अतः यह स्वयंसिद्ध है कि देवपूजा प्राचीन एवं शास्त्रसम्मत है ।। ६७ ।।
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