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________________ आगम शास्त्रों का परिशीलन-अनुशीलन करके शब्दरत्नों को आगमशास्त्ररूपी महासागरों से चुना है। इस शब्दकोश शास्त्र में एक ही पद की नानार्थकता को भी महाकौशल के साथ प्रदर्शित किया है। जैसे-'हरि' नामक पद में विष्णु-सूर्य-बन्दर-साँप-इन्द्र आदि की वाचकता है । ये नानार्थकता स्वयं कोशकारों ने कल्पित नहीं की है, किन्तु इसका प्राधार तत् तत् प्रामाणिक आगम एवं शास्त्रों के प्रयोग हैं ।। ६६ ।। [ ६७ ] 0 मूलश्लोकःतथा पूजाऽप्याँ अपचितिसपर्ये च यजनं , उपास्येवाऽभ्या यजिरिति तथेष्टिनिगदिता । परे नो वर्तन्ते कति च गणयेद् तान् बुधवरः , विना पूजां नैति कथमिह चितास्ते कविवरैः ॥ १७ ॥ संस्कृतभावार्थः-यथा 'हरि'रित्यादयो वणितास्तथैव 'पूजा' शब्दस्यापि अनेकपर्यायवाचिनो निर्दिष्टाः सन्ति । पूजा, अर्हा, अपचितिः, सपर्याः-यजनम्, उपास्या, उपासना, अर्चना, अभ्यर्चा, यजिः, इष्टिः इत्यादयः । अन्येऽपि चैवमेव वर्तन्ते पर्यायशब्दाः केषां केषाञ्च गणना कर्तव्या-स्थालीपुलाकन्यायेनैतदेव पर्याप्तम् । विचार -०-१२१-०
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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