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________________ जिनस्य प्रतिमा केनापि प्रज्ञानिना पूर्वं खनित्वा भूमौ पाटिता, विश्वासार्थं भवन्त उत्खात्य पश्यन्तु । जिज्ञासावशात् यदा ते विप्राः अखनन् तदा तु मुनिवचनं सत्यमभूत् । ततो भूगर्भाद् श्रीशान्तिनाथ जिनस्य प्रतिमा निष्कासिता । एतेनापि मूर्तिपूजायाः प्रामाणिकता, प्राचीनता च प्रमारणीभवतीत्याकूतम् । * हिन्दी अनुवाद - दयालु मुनिराज ने और कहा कि इस स्थल पर त्रिलोकीनाथ श्रीशान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा किसी अज्ञानी जीव ने पहले खोद कर भूमि में गाड़ दी थी । यदि विश्वास न हो तो तुम खोदकर देख लो । इस तरह मुनिराज से सुनकर विप्र ने जिज्ञासावश उस स्थल की खुदाई की तब मुनिराज के वचनानुसार सत्यता ज्ञात हुई । भूगर्भ से भगवान श्री शान्तिनाथ की प्रतिमा निकाली गई । इससे भी मूर्तिपूजा की प्राचीनता तथा प्रामाणिकता उजागर होती है, यह अभिप्राय है ||१०|| [ १ ] → मूलश्लोक: , बभूवादौ कश्चिज्जिनवरमतिः सम्प्रतिनृपः यशस्वी तेजस्वी करुणहृदयो न्यायनिपुणः । दयारेभे चित्ते शिरसि यमिनां वन्दनमलं श्रुतौ श्रद्धा धर्मे भुवनतिलको दातृषु वरः ॥ ६१ ॥ ↑ श्रीजिन- -८ --- ११३०
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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