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उपायेन भवदीयो देव: प्रसन्नः स्यात् तथा प्रयत्नीयम् । एषा हिंसा तु वृथैव जायते एतत्तु पापप्रवृद्धिकरं : स्यात् ।
* हिन्दी अनुवाद-मैं मानता हूँ कि माननीय प्राप, : निर्मलबुद्धि ज्ञानी विश्ववन्द्य एवं परमकारुणिक हैं। इस विधि से हवन करने से अनेक जीवों की हिंसा स्वतः हो रही है। ज्वालाओं से झुलसता उनका जीवन क्षार-क्षार हो रहा है। अतएव यदि किसी अन्य उपाय से आपके अभीष्ट देव प्रसन्न हो सके तो उस विधि से प्रयत्न करना चाहिए। निर्दोष जीवों की हिंसा व्यर्थ हो रही है। साथ ही यह हिंसा पाप को बढ़ाने वाली सिद्ध होगी ।। ८६ ।।
.. [६० ] 0 मूलश्लोकःइहास्ते श्रीशान्तेस्त्रिभुवनगुरोर्मूत्तिरतुला। क्षितौ केनाऽज्ञानात् विहतमतिना वै विनिहता ॥ खनित्वा प्रेक्षध्वं भवतु भवतां निश्चयमिदम् । : . तथा चक्रुर्विप्रा मुनिनिगदितं सत्यमभवत् ॥ ६० ॥ .
5 संस्कृतभावार्थः-तेन दयालुना मुनिना कथितं यत्अस्मिन् स्थले त्रिलोकनाथस्य भगवतः श्रीशान्तिनाथ