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यज्ञोत्थितज्वालाभिम्रियन्ते-इति विलोक्य स विप्रं सन्निकटागत्य प्रोचे।
* हिन्दी अनुवाद-एक समय की बात है कि कोई एक विप्र-ब्राह्मण अपनी शास्त्रीय विधि से, अपने इष्टदेव को उद्देशित करके सुगन्धित घृत इत्यादि हवनीय पदार्थों से जलती हुई यज्ञाग्नि में हवन कर रहे थे, तभी परमकुपालु एक मुनिवर ने देखा कि ऐसा करने से अनन्तानन्त जीव यज्ञाग्नि से उठती हुई ज्वाला से मर रहे हैं। ऐसा देखकर वे विप्र-ब्राह्मण के सन्निकट-समीप आये और बोले ।। ८८ ॥
[८६ ] D मूलश्लोकःभवन्तो धर्मज्ञा विमलमतयो बोधनिचयाः , श्रुतीनां वक्तारः करुणहृदया विश्वमहिताः । परोपायर्देवो यदि च प्रियेद् यच्छतु प्रियं, मुधा हिंसा पापं विधिमिह वितन्वन्ति सहसा ॥ ८६ ॥
+ संस्कृतभावार्थः-अहं मन्ये तत्रभवन्तो निर्मल'बुद्धयः ज्ञाननिलयः, वेदप्रवक्तारः विश्ववन्द्याः करुण हृदयाः सन्ति । अनेन विधिना अहं पश्यामि यत् अनेकानां जीवानां प्राणघातो भवति । अतो यदि केनापि अन्येन