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________________ [ ८५ ] - मूलश्लोकःसुखश्रेणी यस्यां वसति कलहंसीव सुखदा , गुणग्रामा रामा नयनसुख पारा त्वनुदिनम् । महीयन्ते तस्माद् भवभयविभेतुः प्रतिकृतिः , लभन्तां तां सिद्धि विहभवभवां वा परगताम् ॥ ५ ॥ के संस्कृतभावार्थः-यथा कमलवनेषु राजहंसी विचरति तथा प्रभुगुणसुमननिकुञ्जेषु भक्तिभावभरितानां सहृदयानां भक्तवृन्दानां मनांसि रमन्ते । अतएव भव्यपुरुषाः मोक्षावाप्तये परमसुखप्राप्तये प्रभोः प्रतिमा स्थापयन्ति पूजयन्ति च । भावनैमल्यात् तत् प्रभावाच्च मुक्तिश्रियं लभन्ते ।। ८५ ।। * हिन्दी अनुवाद-जिस प्रकार कमल-वन में (कमलों के समूह में) राजहंसिनी विचरण करती है, उसी प्रकार प्रातःस्मरणीय परम पूजनीय प्रभु के गुणरूपी कमलनिकुञ्जों में भक्ति भाव से परिपूर्ण सहृदय भक्तवृन्द के पवित्र मानस विहार करते हैं, रमते हैं। अतएव भव्यजन मोक्षप्राप्ति तथा परम सुखोपलब्धि के लिए सदैव प्रभु की मूत्ति-प्रतिमा को प्रतिष्ठित करके अनन्त श्रद्धा एवं भक्ति से पूजते हैं और भावनात्मक निर्मलता तथा -- १०७ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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