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________________ + संस्कृतभावार्थः-प्राधारं विना किमपि कार्य सफलताशिखरं न चुम्बति, इति सर्वे जनाः जानन्ति । रात्रौ चन्द्रमसं द्रष्टुमभिलाषी मनुष्यो द्विभूमं प्रासादं (भवनं) आरोढु सोपानपरम्पराया आश्रयं गृह्णाति । सोपानपरम्परामस्वीकृत्य, प्रथमपंक्तौ चरणमसंस्थापयन् केन प्रकारेण द्विभूममारोढुं समर्थः कोऽपि जनः ? कथमपि नैवेत्युत्तरम् । एवमेव विचारयन्तु भवन्तो निराधारा भक्तिः कथं साधयसी स्यात् सुकुमारमतीनां सहृदयानां सश्रद्धानाञ्च जनानाङ्कृते इति । अतएव श्री जिनमूर्तेरालम्बनं नितान्तमावश्यकतां भजते । मुक्तिनगर्याः प्रथमसोपानभूता मूर्तिपूजा एव ।। ८४ ।। * हिन्दी अनुवाद-प्राधार के बिना कोई भी कार्य सफलता के शिखर पर नहीं पहुँचता-ऐसा सभी जानते हैं । रात्रि में चन्द्र-दर्शन के लिए लोग दुमंजिले पर चढ़ने के लिए सोपान (सीढ़ी) का सहारा लेते हैं। प्रथम सोपान पर कदम रखे बिना चढ़ना सम्भव नहीं है। विचार कीजिए कि निराधार भक्ति कार्यसाधिका कैसे हो सकती है ? अतएव श्रीजिनमत्ति-प्रतिमा के पालम्बन की नितान्त आवश्यकता है। मुक्ति-नगरी का प्रथम सोपान 'मूत्तिपूजा' ही है । ८४ ।। -o- १०६-०
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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