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________________ .... * हिन्दी अनुवाद-यदि समुद्र में विचरण करने में समर्थ नौका या जलपोत न हो तो कोई भी व्यक्ति समुद्र के दूसरे तट पर या दूसरे द्वीप में कैसे जा सकता है ? ठीक इसी प्रकार यदि व्यक्ति को संसार से विरक्ति न हो तो प्राणातिपात - विरमणादि पंच महाव्रतों को कौन धारण करेगा? यह चपल-चंचल चित्त यदि श्री वीतराग परमात्मा में न रमे तो मित्र ! तुम्हीं बतायो कि वह किस प्रकार मोक्ष-पद प्राप्त कर सकता है ? ॥ ८२ ॥ [ ८३ ] - मूलश्लोकःयथा विद्युद्यन्त्रं प्रथयति दिगालोकितवरा , निरोधं वा तद् यद् घटप्रति क्षणेनैव बहुधा । भवच्चित्तं तादृग् भगवति विलीनं त्वहरहः , पुनर्नो वा तादृक् चलदलनिभं चञ्चलमदः ॥ ८३ ॥ + संस्कृतभावार्थः-यथा विद्युद्यन्त्रेण सपदि दिगन्तोद्योतते तथा स्वकीयस्य मनसो निरोधः (संयमः) यदि स्यात् तदा क्षणेनैवाज्ञानान्धकारो विलयमेति । आत्मप्रकाशश्चकास्ति । किन्तु सर्वं परित्यज्य मनो भगवच्चरणारविन्दं रमेत । अश्वत्थवृक्षपत्रमिव चञ्चलं न
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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