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________________ + संस्कृतभावार्थः-श्रमणानां-मुनीनां जैनोपाश्रयेषु भित्तिषु अथवा कुत्रापि युवतिजनचित्रं विलिखितं भवेत् चेत् तत् विकृतिजनकं मन्यते । काउसग्गध्याने समाधौ वा लीनानां श्रमणानां चित्रं चेत् संसारविरक्तिजनक शान्तिप्रदं प्रोक्तम् ।। ७८ ।। * हिन्दी अनुवाद-श्रमण-मुनिजनों के जैन उपाश्रय में दीवारों अथवा कहीं पर भी युवती का चित्र उत्खचित (कोरा हुअा) हो तो वह विकृति का कारण माना जाता है। मुनिजनों को वहाँ विश्राम करना जैनसिद्धान्तशास्त्रीय रीति से कल्पता नहीं है। काउसग्गध्यान, समाधि में मग्न-लीन महापुरुषों श्री तीर्थंकर भगवन्तों आदि का यदि चित्र हो तो सांसारिक विरक्ति का कारण तथा शान्तिप्रद माना जाता है ।। ७८ ।। [ ७६ ] । मूल श्लोकःयथा साधोर्मानं शिवसुखमनन्ताय नियतं , प्रभोरर्चा भद्रा कथमिह तु तादृक् किमिव नो ? विशिष्टा यात्राभिर्नवनवमहैः शान्तिविधिभिः , अवश्यं विश्वस्मिन् स्फुरति महिमा विश्वविदितः ॥ ७९ ॥ --- ६६ --
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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