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________________ प्रतिनिधिरूपा अस्ति। तामेवाश्रित्य जगद्व्यवहाराः व्यावृतिवराः मङ्गलमयाः भवन्ति । अतः तस्य विरोध परित्यज्य प्रभोः प्रभावमयी मूत्तिः-प्रतिमा प्रतिष्ठापयितव्येति । * हिन्दी अनुवाद-व्यवहार-विश्व में सभी अनुभव करते हैं कि प्रतिनिधि, अधिकारी के समान सम्माननीय होता है। प्रभु की मूत्ति-प्रतिमा भी प्रतिनिधि स्वरूप है। उसका अवलम्बन-पालम्बन लेकर संसार के व्यवहारव्यापार मंगलमय होते हैं। अतः मूत्ति-प्रतिमा के विरोध को त्याग कर प्रभु की प्रभावमयी मूत्ति-प्रतिमा की प्रतिष्ठा करनी चाहिए ।। ७६ ।। [ ७७ ] - मूलश्लोकःशिवं कर्तुर्भर्तुः स्वनुमितिविधातुश्च नियतं , . ततः कार्य बिम्बं भवभयभिदो भव्यमनुजैः । भवद्भिः किं नोक्त सततमिह व्याख्यानसमये , यथा जैनो धर्मः प्रथयति विधेयोऽस्ति स तथा ॥ ७७ ॥ + संस्कृतभावार्थः-ये मनीषयो मूत्ति न स्वीकुर्वन्ति । तेऽपि वदन्ति-यद् ये भाग्यशालिनो जना: सुकार्य धर्म-: प्रचारादिकं वा तन्वन्ति, ते तु उत्तम फलं लभन्ते । तैः श्रीजिन-७
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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