________________
* हिन्दी अनुवाद-श्रीजैनागम शास्त्रों के अनुसार यह बात सुस्पष्ट एवं प्रचलित है कि सम्प्रति प्रवर्तितकाल पञ्चम पारे के रूप में व्यवहृत है। इस पञ्चम पारे में विश्ववन्ध-विश्वविभु वीतराग श्रीजिनेश्वर भगवान तथा उनके श्रुतकेवली गणधर नहीं होते। जिस प्रकार व्यावहारिक विश्व में राजा या शासनाधिकारी के प्रभाव में उसका प्रतिनिधि कार्य-सम्भार ग्रहण करता है, तथा सभी उसके आदेश को राजावत् पालते हैं, उसी प्रकार साक्षात् श्रीजिनेश्वर भगवान के अभाव में उनकी मूर्तिप्रतिमा ही प्रतिनिधि स्वरूप है । इसलिए उसकी स्थापना . परमावश्यक है ।। ७५ ।।
[ ७६ ] मूलश्लोकःनृपस्थाने कृत्वा निजकृतिकृते चेत् प्रतिनिधि , भवेन्मान्यो वन्द्यो वहति जनताज्ञां च शिरसा । प्रवर्तेरन् यस्मात् जनहितकराः व्यावृतिवराः , विधातव्या रम्या विमलमतिभिर्मत्तिरमला ॥ ७६ ॥
संस्कृतभावार्थः-व्यावहारिक जगति सर्वैरवलोक्यते यत् प्रतिनिधिः अधिकारीवत् भवति । सामान्यजनैरादरणीयः सम्माननीयः । प्रभो त्तिः-प्रतिमा
--- ६६ ---