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________________ * हिन्दी अनुवाद - त्रिकालदर्शी भगवान श्रीश्रादिनाथ कहा है कि यदि कोई भी भाग्यशाली जिनमूत्ति की पूजा करता है तो उस व्यक्ति के मन में भी मैत्रीभाव उत्पन्न होता है तथा विघ्नबाधाओं का निष्कासन और आनन्द का प्रकाशन होता है । अतः सर्वदा श्रीजिनमूर्ति की पूजा द्रव्य से तथा भाव से विधिवत् श्रद्धापूर्वक करनी चाहिए ।। ७४ ।। [ ७५ ] → मूलश्लोक: न विद्यन्ते चास्मिन् भुवनमहितास्ते जिनवराः, गणाध्यक्षा दक्षा विमलमतयो ये मुनिवराः । विधीयन्ते लोकैर्नृपतिरहिते वै प्रणिधियः, अतः स्थाप्या भव्यैजिनपदे मूर्त्तिरमला ।। ७५ ।। 5 संस्कृतभावार्थ:- श्रीजैनागमशास्त्रानुसारेण सर्वविदितमेतद् यत् अत्रैव पञ्चमकालोऽयं ( पञ्चमारः ) प्रचलति । अस्मिन् पञ्चमकाले पञ्चमारे संसारचक्रपूजिताः सर्वज्ञदेवाः श्रीजिनेश्वराः तेषां बुद्धिमन्तः श्रुतकेवलीगणधराः अपि न सन्ति । अतएव नृपतेरभावे यथा प्रतिनिधि व्यवहारस्तथैव श्री जिनस्थाने विमला श्रीजिनमूर्तिः भव्यपुरुषैः प्रतिष्ठापयित्वेति प्राकूतम् । --- ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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