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________________ से सारी दूरंदेश स्थिति को देखकर भक्तजनों के सहज कल्याण के लिए जिनपूजा का निरूपण-प्रतिपादन करते हुए कहा है कि श्रीजिनेन्द्रपूजा घोर अज्ञान रूपी अन्धकार का विनाश तथा शिवंकर मोक्षतत्त्व का प्रकाश करने वाली है। अतः सांसारिक कष्ट को दूर करने के लिए भवबन्धन-छेदक स्तोत्रों तथा द्रव्यों से श्रद्धा एवं भक्ति से जिनपूजा अवश्य ही करनी चाहिए ।। ७३ ।। [ ७४ ] । मूलश्लोकःविधत्ते यश्चैवं भवति स च मान्यो नरवरः , कषायाः लीयन्ते समुदयति मैत्री प्रतिजनम् । न तत् कार्ये कश्चिद् भवति विनिपातः परिभवः, वरैर्द्रव्यैरों भुवनहितकारी जिनवरः ॥७४ ॥ + संस्कृतभावार्थः-त्रिकालदर्शिना भगवता श्रीपादीश्वरेण स्फुटतरया प्रतिपादितं यत् यदि कश्चिद् भाग्यशाली द्रव्य-भावाभ्यां जिनप्रतिमां पूजयति स तु निश्चयत्वेन विश्वमान्यो भवति । तस्य कषाया विनश्यन्ति । प्राणिषु मैत्रीभावः उत्पद्यते । तस्य कार्येषु कुत्रापि विघ्नादिकं नैव भवति । जिनपूजा सर्वथा सर्वप्रकारेण सद्रव्य-भावैः परम श्रद्धया सम्पादनीयाः ।
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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