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________________ करने में समर्थ हैं, उसकी वन्दना, पूजा तो नितान्त आवश्यक है। मुक्ति चाहने वाले भक्तजनों को प्रशस्त प्रालंबन के लिए तो नितान्त कान्त परमशान्त जिनमूर्तिप्रतिमा वन्दनीय-पूजनीय है ।। ७२ ।। [ ७३ ] 0 मूलश्लोकःवितत्यैवं धर्म जिनपतिवरेणामलदृशा , समीक्ष्येदं प्रोक्तं शिवसुखमनन्ताय भविने । महामोहध्वंसी जिनवरसपर्या शिवकरी , वरैर्द्रव्यैः कार्या भवभयहरैः स्तोत्रनिवहैः ॥ ७३ ॥ 5 संस्कृतभावार्थः-भगवता श्रीपादीश्वरेण ऋषभेण धर्मतत्त्वं विस्तीर्य राग-द्वोषरहिताभ्यां लोचनाभ्यां निरीक्ष्य भक्तजनानां कल्याणाय प्रोक्तम्-एषा श्रीजिनेश्वरदेवानां पूजा महामोहान्धकारविनाशयित्री प्रकाशयित्री च शिवङ्कराणां मोक्षतत्त्वानाम् । अतः सांसारिक - कष्टनिवारणार्थं भवबन्धनोच्छेदकर्तृभिः स्तोत्रैः सद्रव्यैः श्रद्धया जिनपूजा विधातव्या ।। ७३ ।। * हिन्दी अनुवाद-भगवान श्रीपादीश्वर-ऋषभदेव ने धर्मतत्त्व का विस्तार करके रागद्वषादि कषायरहित नेत्रों --- ६३ --
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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