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कुमुमादिभिः सुरभिते जिनमन्दिरे - जिनचैत्ये श्रुतिरससमन्वितैः वर्णसमूहै: मृदङ्गादिध्वनिभिश्च श्रीजिनस्तोत्रं शान्तिस्नात्रं वन्दनं गायनं नर्तनञ्च जनैः श्रद्धाभावसमन्वितैः दत्तचित्तैः सुमधुरतया कर्त्तव्यम् ।
* हिन्दी अनुवाद-परमश्रद्धेय सच्चिदानन्द स्वरूपी श्रीजिनेश्वरदेव के च्यवनादि पंचकल्याणक होते हैं। वैसे तो इन सभी कल्याणकों में देवपूजन-गीतगान-ध्यान आदि का आयोजन करना चाहिए। किन्तु विशेष रूप से प्रभु के जन्मकल्याणक के दिव्य प्रसंग पर तो कुसुमों से सुगन्धित, विशालकाय जिनमन्दिर में कर्णकुहरों में अमृत सा घोलने वाली सुमधुर शब्दसन्तानमयी स्वरलहरी एवं मृदंग इत्यादि तालवाद्यों के साथ श्रीजिनस्तोत्र, शान्तिस्नात्र, वन्दनगीत, भक्तिनृत्य आदि का रोचक भक्तिपूर्ण प्रायोजन प्रात्मश्रद्धा-भावना से दत्तचित्त होकर, मनमोहक रूप में ही करना चाहिए ।। ७१ ।।
[ ७२ ] 0 मूलश्लोकःसदा पूज्यो वन्द्यो जिनपतिरखण्डामृतमयः , प्रियो ध्येयो गेयो विधुरिव मनोज्ञो नयनयोः । गुरणग्रामारामा भवभवविरामा भगवतः , विमुक्ति वाञ्छद्भिः प्रतिदिनमुपेयाः सहृदयैः ॥ ७२ ॥