________________
मनीषियों की जिनप्रवचनवाणी का लाभ लेने के लिए सुनने की इच्छुक जनता उमड़ पड़ती है। जैसें तीर्थयात्राओं के शुभप्रसंग पर तथा श्रीजिनेन्द्रभक्तिमहोत्सवादिक में विशालकाय जनगण उमड़ पड़ता है। ठीक उसी प्रकार जब जिनमन्दिरादि में लघु या बृहत्शान्तिस्नात्र तथा श्रीसिद्धचक्रादि महापूजन इत्यादि का आयोजन होता है तब धर्मश्रद्धालु जनता अधिक संख्या में उपस्थित होती है और श्रीजिनभक्तिभावना से उद्भावित होकर अपने जीवन को धन्य बनाती है-सफल करती है। इस प्रकार श्रीजैनधर्म का प्रचार-प्रसार दिग्-दिगन्त में सुख-शान्ति की स्थापना करता हुआ विस्तीर्ण होता है ।। ७० ।।
[ ७१ ] 0 मूलश्लोकःसमापन्ने पूज्ये जिनजननकल्याणदिवसे , विशाले सच्चैत्ये प्रचुरकुसुमामोदभरिते । मृदङ्गस्यारावैः श्रुतिसुमधुरै - वर्णनिकरैः , जिनस्तोत्रं स्नात्रं नमनमपि कार्य नरवरः ॥ ७१ ॥
ॐ संस्कृतभावार्थः-परमश्रद्धास्पदानां सच्चिदानन्दस्वरूपाणां श्रीजिनेश्वराणां च्यवनादि - पञ्चकल्याणकेषु विशेषतो जन्मकल्याणकेषु सुरम्ये विशाले सुगन्धित