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संस्कृत भावार्थ:- यो सद्भाग्यशाली पुरुषः मन्दिर - निर्माणं वितनोति तस्य विमला कीर्त्तिः शरच्चन्द्रचन्द्रिकेव सर्वत्र दिग्दिगन्तेषु प्रसरति । शोधितसत्यमेतद् यत् भौतिकधनाद् धर्मधनार्जनं वरम् । श्रीजिनेश्वर भगवतो मूर्तिः - प्रतिमा आराधनं भवभीतिहारि चेतः प्रसादकारि, अन्तर्मलापहारि वर्त्तते । ये च श्रीजिनेश्वरस्य मूर्तिप्रतिमां-बिम्बं निर्मापयन्ति, अनुमोदयन्ति कुर्वन्ति च ते सर्वेऽपि क्रमशः स्वर्गापवर्गादिकं लभन्ते ।
: हिन्दी अनुवाद जो सद्भाग्यशाली पुरुष मन्दिर का निर्माण करवाता है, उसकी शरत्कालीन चन्द्रमा की किरणों के समान दुग्ध धवल कीर्ति सर्वत्र फैलती है । वस्तुतः यह परीक्षित सत्य है कि भौतिक धन की अपेक्षा धर्मरूपी धन का उपार्जन श्रेष्ठ है । श्रीजिनेश्वर भगवान की मूर्ति प्रतिमा की आराधना भव-संसार का भय दूर करने वाली, चित्त को प्रसन्न करने वाली तथा आत्मा के अभ्यन्तर कर्म-दोषों को विनष्ट करने वाली प्रत्युत्तम प्रामाणिक है । जो लोग जिनमूत्ति - जिनप्रतिमा- जिनबिम्ब बनवाते हैं, बनाते हैं या अनुमोदित करते हैं, वे सभी क्रमशः स्वर्गादि का सुख यावत् मोक्ष का भी शाश्वत सुख प्राप्त करते हैं ।। ६८ ।।
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