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मोक्षप्रदा हितकारिणी श्रेयकारिणी च वर्तते । यथा रात्री दीपमन्तरा गृहं न शोभते तथैव मूर्तिमन्तरा न मन्दिरम् । अतः मूर्तिस्थापना पूजनं च अस्माकं अवश्यमेव कर्तव्यमिति । ____हिन्दी अनुवाद-विश्व में मन्दिर के बिना दर्शनीय मूत्ति-प्रतिमा दृष्टिगोचर नहीं होती, अत एव सर्वप्रथम मन्दिर का निर्माण करवाना चाहिए। तदनन्तर शास्त्रीय विधान से विधिपूर्वक मूर्ति-प्रतिमा स्थापित करवानी चाहिए। मूर्ति-प्रतिमा की अति सुन्दर अंगरचना पूर्ण भक्ति एवं निष्ठा से करनी चाहिए। श्री जिनेश्वर प्रभु की मूर्ति-प्रतिमा भवभयविनाशिनी तथा परम पद-मोक्षदायिनी है। जैसे रात्रि में दीपक बिना गृह नहीं शोभता है, वैसे प्रभु की मूत्ति बिना मन्दिर नहीं शोभता है । अतः प्रभु की मूर्ति की स्थापना-प्रतिष्ठा तथा अहर्निश विधिपूर्वक त्रिकाल पूजा-पूजनादि ही हमारा परम कर्तव्य है ।। ६७ ।।
[ ६८ ] मूलश्लोकःविधत्ते यश्चैत्यं प्रसरति च तस्यातिमहिमा , धनाधिक्यं धर्म प्रतिदिनमसावर्जयति वै । शिवं कर्तुर्दातुरनुमतिविधातुश्च नियतं , ततश्चैत्यं कार्यं भवभयविहर्तुश्च प्रतिमा ॥ ६८ ।।
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